जबलपुर कलेक्टर ने निजी स्कूल संचालकों पर कराई FIR
स्कूलों की 90 फीसदी किताबें फर्जी: पुस्तकों के खेल की कमाई सुन उड़ेंगे होश, बच्चों का भविष्य दिखाकर ऐसे बना रहे बेवकूफ
हाइलाइट्स
कमीशनखोरी के लालच में स्कूलों में चल रही फर्जी किताबें
जांच में बिना ISBN नंबर की 90 फीसदी तक मिली फर्जी किताबें
जबलपुर कलेक्टर ने किया
खुलासा- कैसे लुट रहे पेरेंट्स?
प्राइवेट स्कूल की मनमानी और कमीशनखोरी की खबरें आये दिन सुनी होंगी।
लेकिन ऐसा पहली बार हुआ जबकिसी IAS ने ही इस पूरे सिंडीकेट का पर्दाफाश किया है।
मध्य प्रदेश के जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना ने इस पूरे माफिया का न सिर्फ खुलासा किया, बल्कि 11 स्कूल संचालकों पर एफआईआर दर्ज कर 27 मई की अलसुबह सभी को गिरफ्तार कर लिया।
इस पूरे खुलासे को सुन आप भी चौंक जाएंगे कि किस तरह से बच्चों के भविष्य का सुनहरा सपना दिखा प्राइवेट स्कूल बेवकूफ बनाते हैं।
स्कूल में चलने वाली 90% किताबें फर्जी
जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना ने खुलासा किया कि स्कूलों में चलने वाली 90 प्रतिशत और कई मामलों में तो 100% किताबें तक फर्जी है।
दीपक सक्सेना ने अपनी जांच में पाया कि निजी स्कूलों में चल रही किताबों पर जरुरी ISBN नंबर है ही नहीं। इन किताबों पर जो ISBN नंबर दर्ज किये गए हैं, वे सब फर्जी हैं।
ISBN नंबर क्यों होता है जरुरी
आईएसबीएन एक अंतर्राष्ट्रीय मानक पुस्तक संख्या है। ये 13 अंका का एक कोड है।
जिसमें पुस्तक से संबंधित हर जानकारी जैसे प्रकाशक, विक्रेता, एमआरपी की जानकारी दर्ज होती है।
ISBN नंबर होने से पुस्तक का अधिकतम विक्रय मूल्य फिक्स हो जाता है। ऐसे में इसमें कमीशनखोरी की गुंजाइश नहीं रहती।
यही कारण है कि स्कूलों में चल रही अधिकांश पुस्तकें बिना या गलत ISBN नंबर के फर्जी चल रही हैं।
11 स्कूलों में चल रही 1907 किताबें
जबलपुर के 11 स्कूलों में 1907 किताबें चल रही हैं। इनमें अधिकांश फर्जी हैं। ये आंकड़ा डरावना है।
एक स्कूल में नर्सरी से 10वीं तक 13 क्लास और 11 से 12वीं तक विषयवार 6 क्लास मान लें, तब भी एक स्कूल में क्लासों की कुल संख्या 19 से अधिक नहीं हो सकती।
इस लिहाज से हर क्लास में औसतन 9 से 10 पुस्तकें चल रही हैं।
कमीशन कमाने बच्चों पर डाल रहे बोझ
जबलपुर कलेक्टर की जांच में सामने आया कि बच्चों के कंधो पर ये बोझ कमीशनखोरी के चक्कर में जानबूझकर डाला जा रहा है।
बच्चों का सुनहरा भविष्य दिखाकर पेरेंट्स को अतिरिक्त पुस्तकों को खरीदने के लिए कनवेंश किया जाता है।
नतीजा बच्चों पर पढ़ाई के साथ साथ पुस्तकों का बोझ भी बढ़ रहा है।