राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की अदालतें मुकदमों के बोझ तले दबी हैं. वैसे तो दिल्ली में कुल 12 लोवर कोर्ट हैं और इनमें 672 जजों की तैनाती भी है, लेकिन यहां मुकदमों का इस तरह से अंबार लगा है कि किसी भी मुकदमे की सुनवाई में पर्याप्त समय दे पाना काफी मुश्किल है. एक रिपोर्ट के मुताबिक इस समय दिल्ली की अदालतों में लगभग 15 लाख से अधिक मुकदमे लंबित हैं. इनमें से मुश्किल से 24 हजार मुकदमों को रोज हियरिंग के लिए रखा जाता है.

इस आधार पर हर जज को हर रोज औसतन 35 मुकदमों की हियरिंग करनी होती है. अब यदि हर मुकदमे को लगभग एक समान वक्त दिया जाए तो एक मुकदमे की सुनवाई के लिए मुश्किल से 10 मिनट मिलेगा. चालान और अन्य छिटपुट मामलों के लिए तो यह समय कुछ हद तक ठीक है, लेकिन सिविल और क्रिमिनल के मुकदमों की सुनवाई इतने कम समय में संभव ही नहीं. ऐसे में इन मुकदमों की सुनवाई करने वाले जजों पर दबाव की स्थिति का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है.

13 लाख हैं क्राइम के मुकदमे

रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली की अदालतों में लंबित 15 लाख मुकदमों में से 13 लाख मुकदमे तो अपराध के ही हैं. इसमें भी 5199 मुकदमे रेप के, 3988 मुकदमे हत्या के, 9682 मुकदमे बाल यौन उत्पीड़न के हैं. इसी प्रकार 2.18 लाख मुकदमे सिविल के हैं. इसी प्रकार 52 हजार मुकदमे मैट्रीमोनियल डिस्प्यूट के हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली की अदालतों में तैनात जजों पर काम का बहुत दबाव है. सीजेएम से लेकर डीजे तक की अदालतों में मुकदमों की लिस्ट काफी लंबी है.

रोजाना 24 हजार मुकदमों की सुनवाई

मेरिट के आधार पर रोजाना सुनवाई के लिए मुश्किल से 24 हजार मुकदमे रखे जाते हैं. चूंकि यहां कुल 672 जजों की तैनाती है, इसलिए हरेक जज के हिस्से में औसतन 35 मुकदमे आते हैं. इनमें से कुछ मामले पेशी के होते हैं तो कुछ मामलों में गवाही, बहस या फैसले होने होते हैं. ऐसी स्थिति में किसी भी जज के लिए हरेक मुकदमे की हियरिंग में पर्याप्त समय दे पाना काफी मुश्किल है.